तब लोगों को मेरी याद आएगी
आज भगत सिंह-सुखदेव-राजगुरु ( Bhagat Singh - Sukhdev- Rajguru) की शहादत का दिन है। हालाँकि किसी को पुण्यतिथि या जन्मदिन पर याद करना, औपचारिकता ही लगती है। इसके बावजूद यह औपचारिकता कई बार जरूरी है। खासतौर पर उस वक्त जब हम देशभक्ति की बातें तो बड़ी-बड़ी करें पर देश में रहने वाले लोगों के बारे में ज़रा भी न सोचें। इसी बात को याद दिलाने के लिए भगत सिंह (Bhagat Singh) की रचनाओं में से चुनी गई कुछ लाइनें यहाँ पेश है।
भगत सिंह (Bhagat Singh) के चंद विचार
''चारों ओर काफी समझदार लोग नज़र आते हैं लेकिन हरेक को अपनी जिंदगी खुशहाली से बिताने की फिक्र है। तब हम अपने हालात, देश के हालात सुधरने की क्या उम्मीद कर रहे हैं।''
(1928)
'' वे लोग जो महल बनाते हैं और झोंपडि़यों में रहते हैं, वे लोग जो सुंदर-सुंदर आरामदायक चीज़ें बनाते हैं, खुद पुरानी और गंदी चटाइयों पर सोते हैं। ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए? ऐसी स्थितियाँ यदि भूतकाल में रही हैं तो भविष्य में क्यों नहीं बदलाव आना चाहिए? अगर हम चाहते हैं कि देश की जनता की हालत आज से अच्छी हो, तो यह स्थितियाँ बदलनी होंगी। हमें परिवर्तनकारी होना होगा।''
(अगस्त 1928)
'' हमारा देश बहुत अध्यात्मिक है लेकिन हम मनुष्य को मनुष्य का दर्जा देते हुए भी हिचकते हैं।''
'' उठो, अछूत कहलाने वाले असली जन सेवकों तथा भाइयों उठो... तुम ही तो देश का मुख्य आधार हो, वास्तविक शक्ति हो... सोए हुए शेरों। उठो, और बग़ावत खड़ी कर दो।''
(अछूत समस्या 1928)
'' संसार के सभी गरीबों के, चाहे वे किसी भी जाति, रंग, धर्म या राष्ट्र के हों, हक एक ही हैं।''
'' धर्म व्यक्ति का निजी मामला है, इसमें दूसरे का कोई दखल नहीं, न ही इसे राजनीति में घुसना चाहिए।''
(1927)
''जब गतिरोध की स्थिति लोगों को अपने शिकंजे में जकड़ लेती है, तो किसी भी प्रकार की तब्दीली से लोग हिचकिचाते हैं। इस जड़ता और घोर निष्क्रियता को तोड़ने के लिए एक क्रांतिकारी स्पिरिट पैदा करने की जरूरत होती है, अन्यथा पतन और बर्बादी का वातावरण छा जाता है।''
''अंग्रेजों की जड़ें हिल गई हैं और 15 साल बाद में वे यहाँ से चले जाएँगे। बाद में काफी अफरा-तफरी होगी तब लोगों को मेरी याद आएगी।''
(12 मार्च 1931)
''मैं पुरजोर कहता हूँ कि मैं आशाओं और आकांक्षाओं से भरपूर जीवन की समस्त रंगीनियों से ओतप्रोत हूँ। लेकिन वक्त आने पर मैं सबकुछ कुरबान कर दूँगा। सही अर्थों में यही बलिदान है।''
(सुखदेव के नाम पत्र, 13 अप्रैल 1929)
जहाँ तक प्यार के नैतिक स्तर का सम्बंध है... '' मैं कह सकता हूँ कि नौजवान युवक-युवतियाँ आपस में प्यार कर सकते हैं और वे अपने प्यार के सहारे अपने आवेगों से ऊपर उठ सकते हैं।''
(सुखदेव को पत्र , 1928)
(इंकलाब-जिंदाबाद पोस्टर परिकल्पना व डिजायन- नासिरूद्दीन)
नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम
ReplyDeleteउठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना ।।
जी आज भारत का नक्शा ( हालात ) कुछ ओर होते, अगर देश की बांगडोर नेहरु, गांधी के वजाये भगत सिहं ओर नेता सुभाश चन्दर, ओर सरदार पटेल जेसे नेताओ के हाथो मे होती, जिन्हे सच मे इस देश से प्यार था.अजादी का छिक्का सीधा इन नेताओ के हाथ मे आया ओर देश दिमागी तोर पर गुलाम ही रहा.
ReplyDeleteभगतसिंह की विचारधारा से जुड़िए, उसे स्थाई बनाइए, उसे विकसित कीजिए।
ReplyDeleteसलाम भारत मां के इन सपूतों को!
ReplyDeletedesh jameen or miti se nahi banata desh banta hai desh me rehne wale logoin se aaj hum bhul chuke hain ki hum kon hain ek bar apne mann me socho ki mein kon huin fir yaad karo shahidoin ko or dil se kaho mein bharat huin
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