Monday, June 25, 2007

वह शहीद नहीं था

("वह शहीद नहीं था" कविता पंजाबी के कवि सुरजीत पातर की है। भगत सिंह (Bhagat Singh)की याद से जुड़ी यह कविता हिन्दी में उद्भावना में प्रकाशित हुई है। शहीदे आजम SHAEED E AZAM के पाठकों के लिए हम इसे यहां साभार पेश कर रहे हैं।)

उसने कब कहा

शहीद हूं मैं

फांसी का रस्सा चूमने से कुछ रोज पहले

उसने तो केवल यही कहा था

कि मुझसे बढ़ कौन होगा खुशकिस्मत ...

मुझे नाज़ है अपने आप पर

अब तो बेहद बेताबी से

अंतिम परीक्षा की है प्रतिक्षा मुझे

कब कहा था उसने : मैं शहीद हूं


शहीद तो उसे धरती ने कहा था

सतलुज की गवाही पर

शहीद तो, पांचों दरिया ने कहा था

गंगा ने कहा था

ब्रह्मपुत्र ने कहा था

शहीद तो उसे वृक्षों के पत्ते-पत्ते ने कहा था


आप जो अब धरती से युद्धरत हो

आप जो नदियों से युद्धरत हो

आप जो वृक्षों के पत्तों तक से युद्धरत हो


आपके लिये बस दुआ ही मांग सकता हूं मैं

कि बचाये आपको

रब्ब

धरती के शाप से

नदियों की बद्दुआ से

वृक्षों की चित्कार से।

(पंजाबी से अनुवाद- मनोज शर्मा)

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