Friday, September 28, 2007

घोड़ी भगत सिंह शहीद

आज भगत सिंह की सा‍लगिरह है। जिंदा रहते तो आज, भगत सिंह सौ साल के होते। लेकिन शहीद भगत सिंह विचार के रूप में एक मज़बूत विरासत हमारे लिये छोड़ गये। कल हमने इरफान हबीब का विचार पढ़ा था... आज लोकमानस में रचे बसे भगत सिंह के बारे में पढि़ये-

चमन लाल

... डॉ गुरुदेव सिंह सिद्धू के सम्पादन में 'सिंघ गरजना' शीर्षक से भगत सिंह से सम्बंधित पंजाबी कविताओं का एक संकलन पंजाबी विश्वविद्यालय ने 1992 में प्रकाशित किया था और अभी 2006 में इन्हीं के सम्पादन में पंजाबी में 'घोडि़या शहीद भगत सिंह' संकलन छपा है। ...
'घोड़ी' पंजाबी भाषा का लोकगीत रूप है, जिसमें दूल्हा बारात जाने और दुल्‍हन लाने के लिए चलते समय घोड़ी पर चढ़ता है और उसके पीछे 'सरवाला', जो अक्‍सर उसका छोटा भाई होता है, वह बैठता है। भगत सिंह के संदर्भ में 'घोड़ी' लोकगीत रचने वाले लोक कवियों ने 'मौत' को भगत सिंह की दुल्हन के रूप में चित्रित करते हुए भगत सिंह को चाव से अपनी दुल्हन को प्राप्त करने का बिम्ब सृजित किया है। 'मौत' यानी 'फांसी' पर चढ़ते जाते वक्‍त भगत सिंह का दूल्हे की तरह घोड़ी पर चढ़कर जाना लोकमानस का ऐसा बिम्ब है, जिसने भगत सिंह को सदियों तक के लिए लोकमानस में ऐसे प्रतिष्ठित कर दिया है कि उसका हाल में उभरकर आया वैचारिक पक्ष उसे और सुदृढ़ तो कर सकता है, लेकिन उस बिम्ब को बदल नहीं बदल सकता।

पंजाबी (गुरमुखी व फ़ारसी- दोनों लिपियों में) 1931 के आसपास मिलते-जुलते शब्दों वाली भी कई घोडि़यां छपीं। शायर मेला राम 'तायर' व महिन्दर सिंह सेठी अमृतसरी की 'घोडि़यों' के कई हिस्से मिलते-जुलते हैं। शायर तायर ने 23 मार्च 1932 को लाहौर में भगत सिंह की शहादत के एक बरस बाद यहां प्रस्तुत 'घोड़ी' को तांगे पर चढ़कर बाज़ार में गाया। इस घोड़ी सम्बंधी, हिन्दी-पंजाबी लेखक गौतम सचदेव ने 'हुण' (जनवरी-अप्रैल 2007) अंक में दिलचस्प किस्सा बयान किया है। गौतम सचदेव के अनुसार उसके ससुर राम लुभाया चानणा स्वतंत्रता सेनानी थे और 1998 में संयोग से गौतम की भेंट इस घोड़ी के शायर तायर से हो गयी, जो उस समय सौ बरस के हो चुके थे, लेकिन उस उम्र में भी उन्हें घोड़ी पूरी तरह याद थी और गौतम ने टेपरिकार्डर में तायर की यादें और घोड़ी उन्हीं के स्वर में रिकार्ड की। इसी घोड़ी को 'लीजेंड ऑफ भगत सिंह' फि़ल्म में भी गीत के रूप में इस्तेमाल किया गया।
भगत सिंह शताब्दी वर्ष... में इस घोड़ी का देवनागरी में लिप्यन्तरण व हिन्दी में भावार्थ प्रस्‍तुत किया जा रहा है।

घोड़ी भगत सिंह शहीद

आवो नी भैणों रल गावीए घोडि़यां
जँआं ते होई ए तियार वे हां
मौत कुडि़ नूं परनावण चल्लिया
देशभगत सरदार वे हां।

(आओ बहनो मिलकर घोडि़यां गाएं
बारात तो चलने को तैयार है।
मौत दुल्‍हन को ब्‍याहने के लिए
देशभक्‍त सरदार चला है।)

फाँसी दे तखते वाला खारा बाणा के,
बैठा तूं चौकड़ी मार वे हां
हंझूआं दे पाणी भर नाहवो गड़ोली
लहूँ दी रत्ती मोहली धार वे हाँ।

(फाँसी के तख्ते को पटरी बनाकर
तुम चौकड़ी मारकर बैठे हो।
लोटे में आंसुओं के जल को भरकर नहाओ (1)
लहू की लाल मोटी धार बनी है।)

फाँसी दी टोपी वाला मुकुट बणा के,
सिहरा तूँ बद्धा झालरदार वे हाँ।
जंडी ते वड्ढी लाडे जोर जुलम दी
सबर दी मार तलवार वे हाँ।

(फाँसी की टोपी वाला मुकुट बनाकर
तुमने झालरों वाला सेहरा पहना है
जोर जुलम की जंडी(2) को तुमने
सब्र की तलवार से काट दिया है।)

राजगुरु ते सुखदेव सरबाले
चढि़या ते तूँ ही विचकार वे हाँ
वाग फडाई तैथों भैणा ने लैणी
भैणा दा रखिया उधार वे हाँ।

(राजगुरु व सुखदेव तुम्‍हारे सरबाले बने हैं।
और तुम उनके बीच में चढ़कर बैठे हो।
घोड़ी की लगाम पकड़ाने का शगुन तुमने बहनों से उधार रखा है।)

हरी किशन तेरा बणिया वे सांढ़ू,
ढुक्के ते तुसीं इको बार वे हाँ
पैंती करोड़ तेरे जांइ वे लाडिया
कई पैदल ते कई सवार वे हाँ।

(हरिकिशन (3) तुम्‍हारा साढ़ू भाई बना है
तुम दोनों एक ही द्वार पर पहुँचे हो
ओ दूल्हे, तुम्‍हारे पैंतीस करोड़ (4) बाराती हैं
कुछ पैदल व कुछ सवारियों पर हैं।)


कालीआँ पुशाकाँ पाके जँआं जु तुर पईं,
ताइर वी होइया ए तिआर वे हाँ।

(काली पोशाकें पहनकर बारात जब
चल पड़ी तो तायर भी तैयार हो गया है।)

नोट-
1. घोड़ी पर चढ़ने से पहले दूल्हे को नहलाया जाता है।
2. दूल्हा घोड़ी पर चढ़कर गांव के बाहर जंड के वृक्ष को तलवार से काटता है, यह भी इस रीति का हिस्सा है।
3. हरिकिशन को पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर में गर्वनर पर गोली चलाने के कारण 1 मई 1931 को फाँसी दी गयी थी।
4. पैंतीस करोड़ उन दिनों अविभाजित भारत की आबादी थी। शायर तायर ने 1998 में इसे दोबारा गाते समय अस्सी करोड़ कर दिया था।

(जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चमन लाल, भगत सिंह के विशेषज्ञ हैं। चमन लाल का यह लेख 'साहित्य में भगत सिंह' शीर्षक से नया ज्ञानदोय के अंक 49, मार्च 2007 में छपा है। यहां प्रस्तुत हिस्सा उसी लेख का है। नया ज्ञानोदय से साभार के साथ यह लेख शहीद-ए-आज़म के पाठकों के लिए प्रस्तुत किया गया।)

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